किसी चीज को याद न कर पाने की यह समस्या आजकल युवाओं और बच्चों को भी परेशान करने लगी हैं। वर्तमान समय में जीवनशैली में हो रहे बदलाव व गड़बड़ी, लोगों के अंदर कमजोर याददाश्त की समस्या के रूप में उभर रही हैं। जिसका असर हमारे रोज की दिनचर्या, कामकाज व जीवन के अन्य पहलुओं पर पड़ रहा है।
- आंकड़ों में देखा गया हैं कि 65 वर्ष के ऊपर के लगभग 5% लोगों में भूलने की समस्या होने लगती है और उम्र के साथ यह बढ़ती जाती है।
- इसी तरह 85 वर्ष के ऊपर के 15 से 20 प्रतिशत बृद्ध जनों में यह समस्या देखने को मिलती है।
याददाश्त कमजोर होने का कारण – Yaddasht kamjor hone ke karan
- भोजन में जरूरी पोषक तत्वों की कमी
- शारीरिक और मानसिक गतिविधियों का कम होना।
- पर्याप्त नींद न लेना
- शारीरिक बीमारियां
- नशीले पदार्थो एवं दवाओं का अधिक उपयोग
- अधिक चिंता या तनाव
- सिर में चोट लगना
- थाइराइड की बीमारी
याददाश्त की कमजोरी के लक्षण – Yaddasht kamjor hone ke lakshan
- बार-बार एक ही चीज को भूल जाना
- बोलते वक़्त सही शब्दों को चुनने में दिक्कत
- सामान्य काम करने में भी परेशानी और भ्रम होना
- एक काम को ही दोहराने की समस्या
- बदलाव को स्वीकार करने में समस्या होना
- चिड़चिड़ापन का बढ़ना
याददाश्त के प्रकार – Yaddasht ke prakar
याददाश्त एक सक्रिय प्रक्रिया है, जो लगातार चलती है। आपका मस्तिष्क ही यह तय करता है कि आप किसी चीज को कितने समय तक याद रखेंगे। कोई भी संदेश मस्तिष्क में अलग-अलग प्रकार से स्मृतियों के रूप में संचित होती हैं। याददाश्त या स्मरण शक्ति को मुख्यतः चार भागों में बांटा गया है।
1. वर्किंग मेमोरी- Working Memory
यह एक क्रियाशील मेमोरी होती है। इस प्रक्रिया में मस्तिष्क को मिला संदेश जैसे ही अपना काम पूरा कर लेता है, मस्तिष्क इसे भूल जाता है। इस प्रकार की यादें दिमाग में कुछ ही समय के लिए टिकती हैं। जब आप काम कर रहे होते हैं उस वक्त तक आपको यह याद रहता है।
इसका एक बेहतरीन उदाहरण यह है कि जब आप किसी रेसिपी को इंटरनेट पर पढ़कर बनाते हैं। उस समय आपको रेसिपी का हर एक पॉइंट याद रहता है, लेकिन कुछ समय बाद यह भूलने लगता है। वर्किंग मेमोरी मस्तिष्क में कुछ मिनट से लेकर कुछ घंटे तक ही बनी रहती है।
2. एपिसोडिक मेमोरी – Episodic Memory
इस प्रकार की यादें आपके मस्तिष्क में किसी विशेष समय के लिए ही दर्ज रहती है। एपिसोडिक मेमोरी को व्यक्ति द्वारा किसी विशेष अवसर पर किये गए अनुभव, स्थितियों, घटना या किसी खास स्थान से आपका जुड़ाव भी कह सकते हैं।
स्कूल या कॉलेज के पहले दिन की बातें, कोई खास उपहार, आपकी पहली जॉब, किसी भाई-बहन या मित्र की शादी के मौके पर बिताए पल आदि, एपिसोडिक मेमोरी के उदाहरण हैं। ये हमेशा के लिए आपके मस्तिष्क में दर्ज हो जाते हैं। इस तरह की यादें आपके मस्तिष्क में उस समय और स्थान तक ले जाकर उनकी याद दिलाती हैं।
3. प्रोसिडरल मेमोरी – Procedural Memory
इस प्रकार की मेमोरी हमारे मस्तिष्क में लंबे समय तक याद रहने वाले भाग में होते हैं। इस तरह की यादें बचपन से ही शुरू हो जाती हैं। यह हमारे द्वारा किये जाने वाले काम और उसके तरीके व दक्षता से जुड़ा होता है। इनमें ऐसी चीजें आती हैं जिन्हें आप जानबूझ कर सीखते हैं और उनकी सहायता से अपने रोज के काम करते हैं।
ऐसी चीजें मस्तिष्क में हमेशा याद रह जाती हैं। हमारा चलना, बात करना, खेल सीखना, कार या बाइक चलाना, जूते में फीते बांधना, खाना पकाना प्रोसिडरल मेमोरी के उदाहरण हैं। इस तरह की प्रक्रिया में हमें सोचने की आवश्यकता नहीं होती है यह स्वतः ही घटित होती हैं।
4. सेमैंटिक मेमोरी – Semantic Memory
सेमैंटिक मेमोरी प्रक्रिया, विचार, सामान्य ज्ञान व तथ्यों से जुड़ी यादें होती हैं। इस तरह की यादें हमेशा हमारे जेहन में बनी रह जाती हैं। जैसा कि आप जानते हैं कि घास का रंग हरा होता हैं, भारत की राजधानी दिल्ली है, बिल्ली क्या है इत्यादि। इस तरह की बातें सेमैंटिक मेमोरी के उदाहरण हैं।
इसी तरह क्रिकेट एक खेल है यह सेमैंटिक मेमोरी है। पर पिछले मैच में क्या हुआ, वो एपिसोडिक मेमोरी है।
कम शब्दों में कहें तो बात यह है कि विभिन्न प्रकार की बातें उनकी जरूरत के अनुसार मस्तिष्क में जमा होती हैं।
याददाश्त पर नींद का प्रभाव
हमारी नींद का मस्तिष्क के तंत्रिका तंत्र के स्वास्थ्य से गहरा सम्बंध होता है। सोते समय हमारा मस्तिष्क दिन भर में मिली जानकारियों को याद करके उन्हें अवचेतन मन मे स्मृतियों के रूप में दर्ज करता है। और खुद को विभिन्न स्मृतियों के लिए तैयार करता है। कभी-कभार यदि आपकी नींद पूरी नही होती तो भी आपका शरीर खुद को दोबारा से ऊर्जावान बना लेता है।
लेकिन अगर लंबे समय तक नींद पूरी नहीं होती है तो इसका असर आपकी याददाश्त पर पड़ने लगता है। प्रकृति ने हर चीज के लिए समय निर्धारित किया है। देर से सोने से भी नींद की गुणवत्ता में कमी आ जाती है, क्योंकि सुबह की नींद की गुणवत्ता वो नहीं होती है, जो रात में होती है।
- बिस्तर पर जाने के बाद फोन, टीवी, लैपटॉप पर ज्यादा समय बिताना भी नींद पर असर डालता है। यह आपकी नींद की गुणवत्ता को कम करता है। ऐसा करने से 7 से 8 घंटे की नींद लेने के बावजूद भी शरीर को पर्याप्त आराम नहीं मिलता।
- हमारे शरीर से स्वस्थ मस्तिष्क की कार्यशैली के लिए कुछ हार्मोन्स के स्राव की प्रक्रिया रात में ही बेहतर होती है, जिससे मस्तिष्क शांत होता है और सुचारू ढंग से काम करता है।
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बीमारियों का याददाश्त पर प्रभाव
शरीर में होने वाली बीमारियों से भी दिमाग के कमजोर होने की समस्या उत्पन्न होती है। थाइराइड की कमी या इससे हुई बीमारी याददाश्त पर बुरा असर डालती है। इसी तरह डायबिटीज, उच्च रक्तचाप, लिवर और किडनी की बीमारियां भी याददाश्त पर बुरा प्रभाव डाल सकती है। इसके अलावा मस्तिष्क की कोशिकाओं में पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन न पहुंचने पर भी मस्तिष्क की कार्यक्षमता पर प्रभाव पड़ता है।
याददाश्त कमजोर होने की समस्या से बचने के लिए क्या करें?/याददाश्त बढ़ाने के लिए अपनाएं ये उपाय – Yaddasht Badhane ke Upay in Hindi
बच्चों और नवयुवकों को इस समस्या से बचने के लिए अपनी जीवनशैली में सुधार करना चाहिए।
- हर दिन कम से कम 6 से 8 घंटे की नींद जरूर लेनी चाहिए।
- दिन में ज्यादा सोने से बचें। यदि दिन में नींद आती है तो आधे घंटे से ज्यादा न सोएं।
- अपने स्क्रीन टाइम यानी मोबाइल, लैपटॉप, टीवी के प्रयोग के समय को कम करें, खासकर उस वक्त जब आप बिस्तर पर जा रहे हों।
- रात को कैफीन युक्त चीजें जैसे चाय, कॉफी, डार्क चॉकलेट आदि का सेवन करने से बचें।
- रोज व्यायाम करें, योगासन का अभ्यास करें इससे रक्तचाप और डायबिटीज होने की आशंका कम होती है।
- अपने आहार में हरी पत्तेदार सब्जियों के साथ-साथ रंग-बिरंगी सब्जियां और फलों को शामिल करें।
- नशे वाली चीजों जैसे एल्कोहल व धूम्रपान से दूर रहें या जितना हो सके कम से कम मात्रा में सेवन करें।
- रोजाना ड्राई फ्रूट्स जैसे कि बादाम, अखरोट और साथ ही कद्दू के बीज, सूरजमुखी के बीज का सेवन भी करना भी याददाश्त के लिए अच्छा होता है।
- नियमित तौर पर स्वास्थ्य जांच कराएं।
याददाश्त बढ़ाने के लिए योग और व्यायाम
योग विशेषज्ञों के अनुसार अपनी याददाश्त और एकाग्रता बढ़ाने के लिये योग और प्राणायाम की सहायता भी ले सकते हैं। नियमित रूप से योग के आसनों का अभ्यास करने से मस्तिष्क की कार्यप्रणाली में सुधार होता है और यह तंत्रिका तंत्र को ऊर्जावान बनाता है।
- सूर्य नमस्कार करें – सूर्य नमस्कार कई आसनों का एक मिला हुआ रूप है। इसको करने से सम्पूर्ण शरीर का व्यायाम होता है। यह शरीर के विभिन्न अंगों को सक्रिय करने, रक्त के प्रवाह को बेहतर करने में मदद करता है। सूर्य नमस्कार तनाव को दूर करके दिमाग की एकाग्रता बढ़ने में सहायक होता है।
- अपने सुबह की दिनचर्या में पद्मासन, पादहस्तासन और हलासन का नियमित अभ्यास करें। ये आसन मस्तिष्क को शांत रखते हैं। साथ ही इनसे तनाव को दूर करने और शरीर से मस्तिष्क तक के रक्त संचार को भी दुरुस्त करने में मदद मिलती है।
- रोज के कामों से होने वाली थकान, तनाव, व अनिद्रा जैसी समस्याओं से मुक्ति पाने के लिए बालासन, सवासन करना फायदेमंद रहता है।
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याददाश्त को बेहतर रखने के लिए खानपान
डॉक्टर बताते हैं कि याददाश्त दुरुस्त रखने में सेहतमंद जीवनशैली ही सबसे ज्यादा मदद करती है। भोजन में जरूरी पोषक तत्वों का होना महत्वपूर्ण होता है। पेट भर खाने के बावजूद यह जरूरी नहीं की आपके दिमाग व शरीर को जरूरी पोषण मिल रहा है।
याददास्त को नुकसान पहुँचाने वाली चीजें
ज्यादा जंकफूड, डिब्बाबंद भोजन, तले-भुने व प्रोस्टेट फूड की अधिकता शरीर में कई तरह के विटामिन्स की कमी का कारण बन जाती है। इस तरह के भोजन में दिमाग की क्षमता को कम करते हैं। इनमें मौजूद तत्व मोटापे, मधुमेह और दिल की बीमारियों को बढ़ाते हैं। साथ ही मस्तिष्क की तंत्रिका कोशिकाओं को क्षति पहुचाते है जो कमजोर याददाश्त का एक कारण बनता है।
याददाश्त के लिए क्या खाएं?
याददाश्त को बेहतर रखने के लिए अपने आहार का विशेष ध्यान रखना चाहिए। भोजन में ओमेगा-3, विटामिन बी 6, बी 12, मैग्नीशियम, पोटैशियम, जिंक और आयरन जैसे तत्वों से भरपूर चीजों को जरूर शामिल करें।
खासकर शाकाहारियों को अपने पोषण पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत होती है। हरी पत्तेदार सब्जियों के अलावा रंग-बिरंगें फल और सब्जियां खाना बहुत जरूरी है। शरीर के लिए कच्चे भोजन का सेवन भी जरूरी होता है, यानी भोजन ऐसी विधियों से पकाएं कि चीजों के पोषक तत्व सुरक्षित रहें।
निष्कर्ष:
शरीर के अन्य भागों की तरह हमें हमारे मस्तिष्क के स्वास्थ्य पर भी ध्यान देना चाहिए। दिनचर्या में गड़बड़ी, तनाव आदि की वजह से कभी कभी भूलने की समस्या हो सकती है। मस्तिष्क के बेहतर स्वास्थ्य के लिए सही खानपान और मानसिक व्यायाम जैसे किताबें पढ़ना, ध्यान (Meditation), मानसिक खेल जैसे शतरंज, पहेली इत्यादि अच्छे होते हैं। गंभीर समस्या होने पर डॉक्टर से मिलना बेहतर होता है।
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धन्यवाद।